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बुधवार, 26 जून 2013

अन्न धन

बाबा अप्पन सात बर्खक पोतासँ, “की हौ बौआ, ललन कतए गेलाह ।”
“बाबूजी तँ पूजा कए रहल छथि ।”
“ईऽऽहऽ.. खेतोपर जेता की खाली पूजे केने गुजारा भए जेतनि, पूजो पाठ एक सीमे धरि नीक होइ छै । जीवन चलै लेल रुपैया चाही आ रुपैया लेल काज करए परै छै आ घरमे जखन अन्न-धन भरल रहै छै तकर बादे पूजो पाठ नीकसँ होइत छैक ।”
बाबा एसगर बड़बड़ाइत दलान दिस चलि गेला ।

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