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रविवार, 9 जून 2013

हारि




साँझु पहर फोनक घंटी बाजल । “ट्रिन न न ट्रिन न न न ट्रिन न न न न... “  
बिना अप्पन नाम बतोने रिसीवर उठेलहुँ । कोनो जवाब नहि । दोसर कातसँ शांत ।
मुश्किलसँ पन्द्रह मिनट बाद फेर फोनक घंटी बाजल । दोसर दिससँ फेरो कोनो आवाज नहि । शाइद हमर स्वर पशंद नहि हेतै अथवा कएकरो आओरसँ गप्प करैक हेतै ।
रातिक एगारह बजे फेर फोन आएल, फोन उठेलहुँ, “हेलो ।“
कनिक कालक चूप्पीकेँ बाद उम्हरसँ, “हम मालकी बजै छी, बहुत दिनक बाद फोन कए रहल छी, ठीक तँ छी ने ? साँझेसँ ट्राइ कए रहल छलहुँ मुदा हिम्मत नहि भए रहल छल । ई कहै लेल एतेक राति कए फोन केलहुँ जे हमर ब्याह भए गेल ।“
“हमरा बुझल अछि ।“
“कोना ।“
“दुबईसँ एला बाद हम अहाँक गाम गेल रही ओहिठाम कएकरोसँ बुझलहुँ जे दू महिना पाहिले अहाँक ब्याह दुरागमन दुनू संगे भऽ गेल मुदा ई की महर इंतजार नहि कए पएलहुँ ।“
“हम बेबस रही..... अहाँक बच्चाकेँ पाँच महिनासँ अपना पेटमे रखने-रखने, आगू दुनियाँक नजरिसँ बचेनाइ असम्भब छल ।“
“हम कहि कए तँ गेल रहि जे छह महिनासँ पहिले पहिले आबि जाएब कि हमरापर बिश्वास नहि रहल ।“
“एहन गप्प नहि छै, हमर तन एहिठाम अछि मुदा मोन एखनो अहीँ लग अछि परञ्च ई समाज, गाम आ परिवारक सामने हम हारि गेलहुँ ।“
“की अहाँक पतिकेँ ई गप्प सभ बुझल छनि ।“
“ हाँ ! अहाँक दऽ नहि मुदा बच्चा दऽ बुझल छनि । ओ देवतुल्य लोक छथि, होइ बला हमर बच्चाकेँ सेहो अप्पन नाम दै लेल तैयार छथि ... (कनिकाल दुनू कातसँ चुप्पीकेँ बाद)  हम एखन एहि द्वारे फोन कएलहुँ जे हमरा आब ताकैक वा फोन करैक चेष्टा नहि करब ओहि सभकेँ बितल गप्प जानि बिसरि जाएब...हुँऽऽ हुँऽऽऽ !” कानेक स्वर संगे रिसीवर राखैक खटखटाहट, फोन बंद ।  

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जगदानन्द झा 'मनु'
मो० 09212461006

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