माए
तामससँ लाल भेल, “मार
कपर जडुआ, बी०ए० एहि दुआरे
करेलीयहुँ जे पढ़ि लिख कऽ गाममे महिस पोसेँ। देखही ललनमाकेँ मुम्बईमे नोकरी करै छै, भोकना दिल्लीमे नोट छाइप रहल छै,
ओ रमेशरा कलकत्तामे डिलर बनि गेलै आ ई
एतेक पढ़ि लिख कए कहैत अछि गाममे रहत, रहत तँ रहत ओहिपर महिस पोसत।”
“माए
सुनू, गाम आब ओ गाम नहि
रहलै आ परदेश परदेशे होइ छै, ओहिठाम
कतबो कियो रहि जेए अप्पन नहि होइ छै। जाहिखन केकरो अप्पन धरतीपर गुजर नहि होइ छै
तखने परदेश जाइए।”
“बेस
से तँ ठीक मुदा ई महिस ?
गामपर रहबअ तँ
महिसे पोसबअ?”
“माए
एहिमे खरापीए की छै आ देखू दिल्ली मुम्बई जाएब किएक पाइ लेल, कतेक तँ पन्द्रह बीस हजारक नोकरी,
खाइत पीबैत बचत कतेक चारि पाँच हजार
मुदा की चारि पाँच हजारसँ जीवन चलि जेतै।”
“तँ
की महिससँ जीवन चलि जेतै।”
“पढ़ूआ
काकाकेँ एकटा महिससँ जीवन चललनि की नहि।”
“तँ
की हुनके जकाँ भए जेबअ।”
“सुनू
हमर प्लान, हम पाँचटा नीक नस्लक
महिस आ संगे एकटा नोकर राखि कए एहि काजकेँ करब। दूधकेँ कतेक बेगरता आ महगाइ छै से
तँ बुझिते छीऐ। आब
देखू एकटा नीक नस्लक महिस चालीस लिटर रोजकेँ एवरेज दूध देतै तँ पाँचटा कतेक भेलै
४० गुने ५ = २०० लीटर रोजकेँ। आब पाइ, चालीसो रुपैए लीटर बेचब तँ २००*४०= आठ हजार रुपैया रोजकेँ
अर्थात महिनाकेँ दू लाख चालीस हजार, चालीस हजार खरचो भए गेल तँ दू लाख महिनाक आमदनी, गोवर काठी, परा पारी अलग।”
“गे
माए ई केना भऽ जेतै, दूऽऽऽऽऽऽ
लाख रुपैया महिना।”
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें