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शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

होएत जँ



हाथक मुरली हमर खुरपी बनल
गोबरधन बनल अछि ढाकी,
प्रजा हमर सभ हराए गेल
माए बनल अछि बूढ़ीया काकी।

एखनो हम गाए चरबै छी
प्रिय नहि लम्पट कहबै छी,
इस्कूलक फीस दए नहि सकलहुँ
तैँ हम चरवाहा कहबै छी।

हमर गीतक स्वर महीसे बुझैत अछि
वा खेतक हरियर मज्जर, सुनि झुमैत अछि
 हमर बालिंग नही  लोक देखने अछि
भरि गामक बासनपर  लिखल अछि।

के लऽ गेल यमुनाकेँ दूर एतेक
जँ कनिको नाम हुनक हम जनितहुँ
हाथ जोड़ि दुनू विनती करितहुँ
यमुनाकेँ हुनकासँ हम माँगितहुँ।

हमरो गाममे जँ यमुना बहैत
विषधर कलियाकेँ हम नथितहुँ,
मुरली बजा कए गैया चरबितहुँ
यमुना कातमे हम नचितहुँ।

होएत जँ  हमरो माए यशोदा
सभक प्रिय हम बनितहुँ
होएत जँ दाऊ भाइ हमर
कतेक बलशाली हम रहितहुँ।
*****

जगदानन्द झा 'मनु'

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