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मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

बढ़ैत चल



नजरि उठा देखें चहुँ ओर
तोरे छौ साँझ आ तोरे भोर
मानलौँ बाट बहुत कठिन छै
मुदा हिम्मत आगू सब सरल छै
सदिखन कूदैत-फानैत चल
हिम्मतसँ तूँ बढ़ैत चल

नस-नसमे ले बिजली भरि
वाधा विपदासँ लड़ि -झगड़ि
काँट-कूश जंगल-झाड़ीकेँ उखाड़ि
मेघ-खण्ड पाथरकेँ फोड़ि-फाड़ि
डेगे डेग ससरैत चल
हिम्मतसँ तूँ बढ़ैत चल

रण ई जीवन पीठ देखा नै
स्वाभिमान भर माँथ झुका नै
अपना संग दोसरोकेँ बचेने
गंजन सहि अपन मुँह सीने
तीत-मीठ सब पीबैत चल
हिम्मतसँ तूँ बढ़ैत चल

चान देखलें आब सूरज धरि जो
हिमालयक अंग-अंगपर जीतक छाप पड़ि जो
धरती फोड़ि नव उर्जाक खान निकाल
किछुए दिन शेष नै समयकेँ टाल
अपने कानि सबकेँ हँसबैत चल
हिम्मतसँ तूँ बढ़ैत चल

धरती सदिखन चलैत रहै छै
घड़ी संग-संग चन्नो नाचै छै
अपनो बढ़ दोसरोकेँ बढ़बैत
भूत ,भविष्य ,वर्तमानकेँ देखैत
दसो दिशामे पसरैत चल
हिम्मतसँ तूँ बढ़ैत चल

अमित मिश्र

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