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गुरुवार, 9 अगस्त 2012

गजल

आबए छैक  मजा रसिक पर कलम चलाबएसँ
बनि गेल जे गजल हुनक चौअन्नी बिहुँसाबएसँ

प्रेम होबएमे नै  लगैत छैक बरख दस बरख
भ जाए छैक प्रेम बस कनेक नजैर झुकाबएसँ

जँ  प्रेममे  कपट होए   टूटीतौ नहि लागै छैक देर
जेना टूटि जाइ  छैक काँच कनीके हाथ लगाबएसँ

जँ नहि बुझि पेलौं आंखिक कोनो इशारा कहियो अहाँ
आईए  की  बुझब  आँखिसँ हमर नोर  बहाबएसँ

ताग टूटल जोरबासँ परि जाइ  छैक गीरह जेना
रूबी ओझरेब ओहिना  बेर बेर प्रेम लगाबएसँ

(आखर -२०)
रूबी झा

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