रंग देखू भरल अछि सभतरि तँ खूनसँ
देश गेलै गैल बैमानीक घूनसँ
साग तरकारी कते भेलै महग यौ
आब छी पोसैत नेना भात नूनसँ
नामकेँ लत्ता गरीबक देहपर अछि
लदल कबिलाहा कते छै गरम ऊनसँ
छैक भिसकी रम बहै भरपूर सबतरि
एखनो हम गुजर केलौं पान चूनसँ
मारि गर्मी लेल 'मनु' बेबस कते छी
ओ तँ अछि पेरीसमे पोसाति जूनसँ
(बहरे रमल, मात्राक्रम-२१२२)
जगदानन्द झा 'मनु' > गजल संख्या- ७६
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें