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शनिवार, 25 अगस्त 2012

गजल


हम चान लेबैलए बढ़लौं अहाँ रोकब तैयो तारा लेबै 
मैथिलकेँ बढ़ल डेग नहि रुकत आब जयकारा लेबै 

मिथिलाराज मँगै छी हम भीखमे नहि अधिकार बूझि
चम्पारणसँ दुमका नहि देब किशनगंज  तँ आरा लेबै 

छोरलौं दिल्ली मुंबई अमृतसर सूरतकेँ बिसरै छी 
अपन धरतीपर आबि नहि केकरो सहारा लेबै 

गौरब हम जगाएब फेरसँ प्राचीन मिथिलाक शानकेँ 
विश्व मंचपर एकबेर  फेर पूर्ण मिथिलाक नारा लेबै 

उठू 'मनु' जयकार करू अपन भीतर सिंघनाद करू 
फेरसँ निश्चय कए सह सह अवतार बिषहारा लेबै      

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२२)  
  

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