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सोमवार, 20 अगस्त 2012

गजल


हमर कमाई कोन कोनामे परल अछि
मंत्री घरमे बैमानीक सोना गरल अछि

गरीब बनि गेल आई जब्बहकेँ बकरी
चिकबा धनिकाहा गामे गाम फरल अछि

डाका परै परोसमे जँ सुतलौं निचैनसँ
ई निश्चय बुझू आत्मा हमर मरल अछि

ढोंगी भक्तकेँ नहि निकलै रुपैया दानमे
भरि थारी लेने खंड माछक तरल अछि

शहर नहि 'मनु' गाम गामकेँ चौकपर
मनुखसँ सजि शराबखाना भरल अछि

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१६)

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