{< मुन्ना कक्का होली मे>}
किनको मुँहेँ सुनने छलौँ इ गान हौ
"बुढ़बा कए दिल होइ छै बेसी जुआन हौ"
होलीका दहन मे जरबै सब लाज-लेहाज छै ,
होली सन दिन मे लाजक कोन काज छै ,
चारि बजे भोरे मुन्ना कक्का उठि गेलाह ,
बड़का टा शंक्वाकार टोपी पहिर लेलाह ,
बड़का टा बाल्टी मे रंग छलै घोरल ,
गोला छल भांगक आधा किलो पिसल ,
होली कए उमंग सबटा सिगनल तोड़ैए ,
केउ अपन केउ भैया कए सासुर धरि दौड़ैए ,
भोर सँ दुपहर .दुपहर सँ साँझ भ गेलै ,
मुन्ना कक्का सँ होली खेल= केउ नै एलै ,
थाकि-हारि चललाह गाम घुमै लए ,
भरल बाल्टी रंग ककरो पर उझलै लए ,
कक्का कए देख सब केउ पड़ाई छल ,
नवका-नवका गाल खोजि रंग लगबै छल ,
ककरा अबीर लगेता ,कनियाँ भेल स्बर्ग वासी ,
भौजी बिमार छेन .सारि बसैए काशी .
मुन्ना कक्का देख इ बड तमसा गेलाह ,
अन्त मे भरल बाल्टी रंग अपने पर उझैल लेलाह ,
ऐ तरह सँ मुन्ना कक्का होली मनेलाह . . . । ।
कविता रूपि लाल गुलाल अपने सबहक चरण मे आ जे छोट छथि हुनकर गाल पर ।
खराप नै मानब होली छै ।
अमित मिश्र
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