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रविवार, 25 मार्च 2012

गजल

रूबी झाजिक गजल बहरे-रमल में----

घोघ हुनकर उतरि गेलै
चान सूरज पसरि गेलै


आँखि काजर भरल हुनकर,
मेघ करिया उमरि गेलै


देखि दाँतक चमक हुनकर
शीप मोती पसरि गेलै

फूल लोढे गेलि बारी
गाछ सबटा झहरि गेलै

गौर पूजै गेलि सीता
राम ऊपर नजरि गेलै

धनुष नै टूटैत देखै
प्राण सभ कें हहरि गेलै

हाथ मालाफूल लेने
भूप सभटा उतरि गेलै


ठार सीता राम निरखति
पुष्प माला ससरि गेलै


(मत्रक्रम 2122,2122, सभ पांति में )
रूबी झा

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