विजय जी और रंजना के
प्रेम बिवाह किछु माह पहीले भेल अछि ! दुरागमन सेहो संगे भऽ गेल किछु दिन के बाद
विजय जिक कनियाँ रंजना कहलखिन, हमरा बिवाह के दु माश भ गेल और अखन तक आहा हमरा कतो
घुमाव नहीं ल गेलो हन्!
विजय जी किछु देर
चुप रहला और फेर बजला हे हमरा जावेत धरी माँ और बाबुजी नहीं कहता तावेत तक हम आहा
के कतो घुमाव नहीं ल जायब बुझलो ! रंजना के मोन कने उदाश भ गेल फेर दुनो गोटे अपन
अपन कॉज में लागी गेला ! विजय जी फेर रंजना के समझा क ओ अपन बाबु जिक पास गेला और
कहलखिन जे रंजना के इच्छा भ रहल छै जे कतो घुमे लेल जय के से जओ आहा के आज्ञा होय
त हम दुनो गोटे घुमी आबि ! बाबु जी हाँ कही देलखिन !
विजय जी और रंजना
यात्रा केरी तयारी शुरू क देला ! दुनो प्राणी माँ बाबुजी के आशीर्वाद लेलाह और घर
सऽ निकैल गेला ! सकरी टीसन पर जा क टिकट कटेला ताबैत धरी शहीद एक्सप्रेस सेहो टीसन
पर आबि गेल दुनो गोटे गाड़ी पर जाकऽ बैसी गेला ! आब गाड़ी के ड्राईवर बाबु सेहो
पुक्की मारला पु....पु..पुपुपुपुपुपू....छु..क.. छुक..छुकछुक छुक..., गाड़ी आगू बढ़ऽ लागल !
गाड़ी जहान पांच-छः
टीसन आगा बरहल ताहि के बाद एकर लेन किलयर नहीं छल ताहि लक् गाड़ी के २-३ घंटा रोकी
देलक ! ताबैत में ओमहर सऽ चाय वला गर्म चाय-गर्म चाय कहैत आयल रंजना अपन स्वामी के
कहैत छथि एक कॉप चाह पीबी लिय आहा भोर में सेहो नहीं पिलो आब विजय जी दु कॉप चाह
के पाई देलखिन और दुनो गोटे पिबऽ लगला ! रंजना दु घुट पीब क खिड़की स बाहर फेक देलक,
विजय जी पुछलखिन कि भेल ? रंजना कहलखिन चाह में स्वाद नहीं लगाल !
विजय जी कहलखिन ठीक
छै गाड़ी लेट या चलू उतरी क कोनो दोकान पर चाह पीबी लई छी, दरभँगा में ओनाहू
जान-पहचान के बहुत दोकानदार अछि ! विजय जी और रंजना दोनों गोटे गाड़ी स उतरी क
दोकान दिश बढला ! एक दोकान पर जा क दु टा चाह और दु टा सिंघारा के आर्डर देलखिन !
थोरबे देर में चाह और सिंघारा लक् आबि ग्लेन दुनो गोटे सिंघारा पावऽ लगला और चाह
सऽ ठोड़ पकावऽ लगला ! रंजना चाह पीबी कने मुस्किया देलखिन आब दुनो गोटे अपना आप में
टकटकी लगा क देखऽ लगला और बिशैर गेलखिन कि हमरा गाड़ी पकरबाक अछि!
लगभग आधा घंटा के
बाद दोकानदार अपन कप लै आयल त देख क कह: लागल अऊ जी महराज लिय चाय के चुस्की
मुस्की के संग, मगर हमर कप त छोरी दिय औरो ग्राहक चाय के लेल ठाढ या ! ई बात सुनी
क रंजना और विजय के मोन लज्जा गेलैन और ओत् स परेलो बाट नहीं सुझलैन ! और ओ जे
टीसन पर अयला त देखैत छथि जे ओ गाड़ी फुजी गेल छल आब दुनो गोटे अपना घर आबि गेला ! माँ और बाबुजी पुछलखिन कि आहा दुनो गेलिये नहीं,
विजय जी बजला बाबुजी गाड़ी हमर छुइट गेल त हम दुनो गोटे सोचलो कि बाद में कहियो चली
जायब ! बाबुजी बजला अत्ति उत्तम जे विचार हुये से करू !
रचनाकार :- अजय ठाकुर (मोहन जी)
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