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शनिवार, 3 मार्च 2012

गजल

अहाँ कखनो तँ बाट हमर घरक धरबै

बिन अहाँक नहि हाथ आन वरक धरबै

 

अहाँ हमर जीवनक पूर्णिमाक इजोरिया

अहीँ तँ सेनुर हमर सिथ परक धरबै

एही जीवनमे सिनेहिया जँ अहाँ नै भेटबै
जीविते जीविते हम तँ  बुझू नरक धरबै


आब फूसीयोसँ एक बेर घर आबि जाउ यौ
अहाँ कखनो तँ कनिको कोनो सड़क धरबै

 

लाली सेनुर टुकली  श्रृंगार हमर सबटा

मनुलेल बनत  नै तँ हम  चरक धरबै

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-17)


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