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शनिवार, 3 मार्च 2012

गजल-२७

अहाँ कखनो तँ बाट हमर घरक धरबै
अहाँक हाथे ओहि दिन हम वरक धरबै

लाली सेनुर टुकली श्रृंगार हमर सबटा
अहाँ बिनु एकरा हम कोनो सरक धरबै

एही जीबन में सिनेहिया अहाँ नहि भेटबै
जिबते जीबैत हम तs बुझु नरक धरबै

अहाँ हमर जिबनक पूर्निमाक इजोरिया
अहीं हमर मोन में इजोत भोरक धरबै

अहाँ आब त फूसीयो सँ आबियो घर जाउ यौ
मनु कखनो त कनिको कोनो सरक धरबै
***जगदानन्द झा 'मनु'

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