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सोमवार, 19 मार्च 2012

मऊगी के बड़ाई

भाई की कहि कोना हम रहे छी
भरिदिन त डयूटी करय छी राइतो के खटय छी
जौं किछु कहब हम हुनका
चट द कहती अहाँ की बुझय छी
साग सब्जी दुर परायत
भेटत ओहि दिन नुन मरचाई
नहिं किछु कहब त देतीह ठिठियाई
किछु कहब त लेती मुँह फुलाई
पन्द्रह दिन ओ घर चलयती
पैसा खतम क के कहती
पन्द्रह दिन आब अहुँ घर चलाबी
नहिं चलाबी त बेलुइर बनइती
सनडे दिन कहती अहीं हाथक किछु खाई
बड़ मऊगी देखलौं भाई
की कहबौ मऊगी के बड़ाई

(मित्र क डायरी स)
आशिक ’राज’

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