प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक गजल
बसल मोन ओ श्वास जकाँ
गरल कोंढ ओ फाँस जकाँ
हम बुझी मजरल आम
ठार ओ तs भेला बाँस जकाँ
बनि एता बयार शीतल
बहल ओ जेठ मास जकाँ
गमकैत एता ओ सुगन्धे
आएल ओ तेल झाँस जेकाँ
सुनबा चाहि ध्वनि मधुर
बाजल ओ स्वर टाँश जकाँ
प्रेमक आश थोर भs गेल,
भs गेल सबटा नास जकाँ
(सरल वार्णिक वहर, वर्ण-१० )
रुबी झा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें