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शुक्रवार, 9 मार्च 2012

गजल -२८

करेजा में अहाँक छबी बसल,मोन हमर ह्टैत नहि अछि
अहाँके स्नेह सागर में नहेलौं,एकर पानि घटैत नहि अछि

सुतै-जागैत ध्यान अहींक केने, हम सदिखन रमल रहै छी
अहाँके अछि सुन्नर काया कतेक, कतौ मन ह्टैत नहि अछि

सगर संसार देलहुँ त्यागि हम, केने वरण छी आब अहीं के
अहाँके संग छोरि कतौ, मिसीयो भरि उसास अबैत नहि अछि

अहींके नाम लिखल अछि, मनु कए एक-एक धरकन पर
पुछूनै हमर हाल अहाँ, बिनु अहाँ जीबन कटैत नहि अछि
(वर्ण-२४,सब पाँति में बहरे-ह्जज I S S S )
***जगदानन्द झा 'मनु'

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