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शनिवार, 24 मार्च 2012

गजल

धाख सबटा बिसरि गेलै
घोघ हुनकर उतरि गेलै

झूठ कोना कें नुकायत
जखन सोंझा बजरि गेलै

सय बचायब बचत कोना
लाज सबटा ससरि गेलै

ओ छलै फेसन सँ डूबल
काज सबटा पसरि गेलै

भेल नेता नींद में सब
देश सगरो रगरि गेलै

(बहरे-रमल,
SISS दु-दु बेर सभ पांति में )
***जगदानन्द झा 'मनु'

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