शहर सँ एलि नवकी बहुरीया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
पहिरने जिंस ताहि पर टँप्स गजवे
घुमे सौसे चौक चौबटिया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
जेहने ढीठ तेहने निर्लज
टुकुर टुकुर देख हाँसे बुढिया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
के जान आर के अन्जान
लागे जेना सब हुनक संगतुरीया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
कतेक करब गुनगान हुनक
मुँह मे राखैत हैदखन पुरीया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
बुढ सास सँ काज कराबैथ
ठोकने रहैत दिनो के केवरिया
पुरनकी देख काटे अहुरीया
मैथिली साहित्य आ भाषा लेल समर्पित Maithiliputra - Dedicated to Maithili Literature & Language
बुधवार, 28 दिसंबर 2011
नवकी बहुरीया
Labels:
कविता,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’

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