बहुत गुमान अछि हम मैथिल छी
मिथला हमर शान अछि
उदितमान ई अछि धरती पर
कोनो स्वर्ग समान अछि !
कण-कण खल-खल कोसी कमला
बुझु एकर पहचान अछि
जनक-जानकी आ विद्यापति
मिथलाक शिर कए पाग अछि !
भक्ती रस कए कथा की कहू
स्वयं संकर चाकरी कने छथि
एकर बिद्व्ता जुनी कियो पुछू
मुंडनमिश्र आ अजानी
भारतीक नाम बिख्यात अछि !
*** जगदानंद झा 'मनु'
("विदेह" प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका,१ नवम्बर २०११,में प्रकाशित)
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