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शनिवार, 31 दिसंबर 2011

गजल


प्रियतम अहाँ कए याद में जिनाई भेल मुस्किल
जीवैत त ' हम छीये नहि मरनाई भेल मुस्किल

किना सुनाऊ हाल करेजाक खंड कै हजार भेल
सब में अहाँक नां लिखल पढनाई भेल मुस्किल

लाख समझेलौंह मोन केँ  ई बनल अछि पागल
आबि अहीँ  समझा दिय ' समझेनाई भेल मुस्किल

केखनो-केखनो सोची पाहिले त ' हाल एना नै छल
जखन सँ भेटलौं अहाँ सँ रहनाई भेल मुस्किल

हमर मन  मंदिर में आब  मूरत अहीँक  अछि
बिना ओकर पूजा कए 'मनु' जिनाई भेल मुस्किल 

(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१९)
जगदानन्द झा 'मनु' : गजल संख्या -५ 

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