बुइझ नै पेलौ
कोना बितल बचपन
कोना आइल लडकपन
कतेक मजा छल नादानी में
अंन्दाज नै छल
एतेक दुख भेटट जवानी में
आय जखन समय
गैची मांछ जेना
हाथ सँ फिसैल गेल
तहन बुझलौ जे
पावय आ हराव केर अही खेल में
जीनगी तय बेकारे गुजैर गेल
मैथिली साहित्य आ भाषा लेल समर्पित Maithiliputra - Dedicated to Maithili Literature & Language
बुधवार, 28 दिसंबर 2011
'बैचैन मोन'
Labels:
कविता,
रवि मिश्रा’भारद्वाज’

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