मैथिलीक विकाशक बाधा थिक
आजुक युवाशक्ति मिथिलाक
पढि लिख कए बनि जाईछथि
डाक्टर आ कलक्टर
मुदा नहि पढि-लिख सकैत छथि
मिथिलाक दू अक्षर
घरसँ निकलैत
ओ कहथिन "चलो स्टेशन"
लागैत छनि संकोच
कहैमे की "चलु स्टेशन"
जेता जखन गामक चौक पर
लागत जेना
बैस रहला मैथिलीक कोखिपर
शैद्खन दुगोत समभाषी
बाजत अपने भाषा
परन्च दूगोत मैथिल
जतबैलेल अपन प्रशनेल्टी
मैथिली तियागि कए
बजए लगता सिसत्मेती
अपन माएक भाषासँ
प्रेस्टीज पर लागैत छनि बट्टा
लोग की कहतनि
संस्कारीसँ भए गेला मर्चत्ता
संस्कारीसँ भए गेला मर्चत्ता |
*****
जगदानन्द झा 'मनु'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें