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मंगलवार, 1 मई 2012

गजल

खून सँ भिजलै धरती  मिथला बनबे करतै 
आब  जोड लगाबे कियो झंडा फहरेबे करतै

सुनु बलिदानी सुनु शैनानी आब दिन दूर नै 
विश्वक नक्सा में मिथिलाक नाम देखेबे करतै

कतबो चलतै बम निकलै चाहे हमर दम 
क्रांति बढल आगु आब जुनि इ रुकबे करतै

बहुत छिनलक सभ नै सहबौ आब ककरो 
गर्म सोनित त आब हिलकोर मारबे करतै
रंजू झा

एक खुनक बूंद सँ सय-सय रंजू जन्म लेतै 
आताताई सँ बदला ओ चूनि-चूनि लेबे करतै

(सरल वर्णिक बहर, वर्ण-१८)
जगदानन्द झा 'मनु'
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