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शनिवार, 12 मई 2012

गजल


छुपि-छुपि क' सदिखन कनै छी हम 
घुटि-घुटि क' दिन राति मरै छी हम 

लगन एहन है छै छल नै बुझल  
विरह के आगि में आब जरै छी हम 

छन भरि के दूरी सहलो नै जाइए
छन-छन घुटि-घुटि क' कनै छी हम 

सब त बताह कहैत अछि हमरा 
हुनक ध्यान में रमल रहै छी हम 

जाहि बाट पर चलि प्रियतम गेला 
मनु ओ बाट के निहारि तकै छी हम 

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१४)
जगदानन्द झा 'मनु'   

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