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शुक्रवार, 11 मई 2012

गजल


ज' नाराज छी मानि जाऊ
पिया प्रेम बिधि जानि जाऊ 


महिस भेल पारी तरे अछि 
घरक खीरसा सानि जाऊ 


मरल माछ पौरल दही अछि 
हिया हमर  सभ गानि जाऊ 


करीया बडद मुइल परसू
किछो नै कनी कानि जाऊ 


छिटल रोपनी हेत कोना 
घरो घुरि अहाँ जानि जाऊ 


(बहरे-मुतकारिब, 122 -122-122)
जगदानन्द झा 'मनु'   

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