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शुक्रवार, 18 मई 2012

गजल

मन सुरभित छल आस मिलन के, प्यास नयन मे तृषित नयन के
बाजल हिरदय धक धक धक धक, सुनितहिं धुन पायल छन छन के


दशा पूर्व के पहिल मिलन सँ, कहब कठिन ई सब जानय छी
साल एक, पल एक लगय छल, बढ़ल कुतुहल छन छन मन के


कोना बात शुरू करबय हम, सोचि सोचिकय मन थाकल छल
भेटल छल हमरा नहि तखनहुँ, समाधान की, एहि उलझन के


बाहर हँसी ठहाका सभहक, सुनैत छलहुँ बस हम कोहबर सँ
चित चंचल मुदा सोचलहुँ बाँचल, चारि दिना एखनहुँ बन्धन के


धीर धरू अपने सँ कहिकय, कहुना अप्पन मोन बुझेलहुँ
वाक-हरण बस आँखि बजय छल, हाथ पकड़लहुँ जखन सुमन के

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