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शनिवार, 26 मई 2012

गजल

ओ निसाँ शराब में कतए चाहि जे पिबैक लेल 
बहाँना माहुर  में कतए चाहि जे चिखैक लेल   
 
सगरो बहल अछि धाड आब शराबक देखू
लाबू कतय सँ सूई-ताग ई धाड सिबैक लेल
 
बचल किए आब शराबे टूटल करेज लेल
बहुतो छै  जीबन में एकर बादो जिबैक लेल 
 
जँ डगमगएल डेग शराबे किएक थामलौं   
बाँकी अछि एकर बादो बहुत सिखैक लेल
 
बहाँना बहुत अछि दुनियाँ में एखनो जिबै के
आबू मनु देखू बहुत किछ अछि पिबैक लेल  
 
वर्ण- १८
जगदानन्द झा 'मनु'

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