कविता
शब्दक प्रहार सं भेलाह कतेको तंग
आपतिजनक शब्द शब्द सं घोरल छल रंग
अपमानक पिचकारी मारैय में कियो छलाह मतंग
मैथिल सभ में छै एकटा बड़का हुनर
आन के बेवकूफ बना अपना के कहत सुनर
फन्ना गदहा चिन्ना कीनर
मिथिला में मचल हुर्दंग हुलर
वितगेल होली मुदा रंगक दाग लागले रहिगेल
ईर्ष्या द्वेष प्रतिशोधक भावना जागले रहिगेल
देश दुनिया नर्क सं स्वर्ग भगेल
मुदा मिथिला स्वर्ग सं नर्क बनिगेल
होली पर भगेल जुड़ सीतल के प्रहार भारी
एक दोसर के गर्दन पर चलल चरित्र हत्या के आरी
जातपातक भेद भाव अछि विनाशकारी
संवेदनशील मुदा पर भरहलअछ घीऊढारी
अपने में अछि सभ एक दोसर के विरुद्ध
मिथिलाक विद्द्वजन में भरहलअछ शीतयुद्ध
जातपात सं नै होइअछ कियो शुद्ध अशुद्ध
धर्म पुन्य सत्कर्म ज्ञान विवेक होइतअछ शुद्ध
मातल छथि सभ पी कS अभिमानक तारी
समय समय सं पढैय एक दोसर के गारी
लागल ऐछ फेक आईडी कय महामारी
छद्मभेदी सभक बिच भरहल छै मारामारी
हे मैथिल मिथिलाक कर्मनिष्ठ कर्णधार
कने देखाउ सद्भाव सद्प्रेमक उद्दगार
भलाबुरा तं छै समूचा जग संसार
एना कटाउंझ केला सं नै लागत कोनो जोगार
अवगुण दुर्गुण वैर भाव कय दूर भगाऊ
गुण शील विवेक प्रेम स्नेह मोन में जगाऊ
भाईचारा प्रेमक एकता दुनिया के देखाऊ
सुन्दर शांत समृद्ध विशाल मिथिला बनाऊ
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
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