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शनिवार, 14 अप्रैल 2012

प्रेमक अंत

हम अपन एकटा नव कथा कए एकटा छोट भाग अपने सबहक समक्ष डी रहल छी शेष जल्दीए देब| 

कथा - प्रेमक अंत 

आइ भोरे सँ आनंदक मोन कतौ अनत' अटकि गेल छलै । की करबाक चाही , की नै करबाक चाही ? गाम -घर मे की भ रहल छै ? एहि तरहक कोनो प्रश्नक जबाब पता नहि छलै । अपन सूधि-बूधि बिसरि गामक अबारा पशु जकाँ इम्हर-उम्हर भटकि रहल छल । पैघ केश-दाढ़ी , मैल-चिकाठि गंजी-पेँट मे अपना -आप सँ बतियाइत देख जँ केउ अनचिन्हार पागल बूझि ढेपा मारत त' कोनो आश्चर्यक बात नहि । आनंदक इ डेराउन रूप देख क' गामक लोक सब अपना मे बतियाइ छल जे परसू जखन दिल्ली सँ गाम आएल छल त' बड-बढ़ियाँ सब कए गोर लागि , काकी-कक्का , कहि क' नीक-नीक गप करै छलैए मुदा इ एके राति मे की भ' गेलै जानि नहि? लागै छै जे मगज कए कोनो नस दबा गेलै आ रक्तसंचार बंद भ' जाएबाक कारण मोन भटकि रहल छै । इहो भ' सकै यै जे बेसी पाइ कमा लेलकै तेए दिमाग खराप भ' गेलै वा भ' सकै छै जे पागल कए दौड़ा पड़ल होइ । आब एसगर कनियाँ काकी की सब करथिन , आब टोलबैये कए मिल क' राँची कए पागल वला अस्पताल मे भर्ती कराब' पड़तै , नै त' काल्हि जँ टोलक कोनो नेना कए पटकि देतै त' ओकर जबाबदेही के लेतै ? अनेक तरहक प्रश्न-उतर , सोच-बिचार के बाद टोलबैया सब निर्णय लेलक जे आइ साँझ धरि देखै छीये ,जँ ठीक नै हेतै त' साँझ मे सब गोटा मिल जउर सँ हाथ पएर बान्हि देबै आ काल्हि भोरका ट्रेन सँ राँची चलि जेबै । जे खर्च-बर्च लागतै से कनियाँ काकी देथिन ,जँ एन.एच लग बला एको कट्ठा घसि देथिन त' ओतबे मे आनंदक बेरा पार भ' जेतै ,आखीर जमीन बेचथिन किएक नहि ,बेटो त' एके टा छेन । कनियाँ काकी मतलब आनंदक माए सँ बीन पुछने टोलबैया ,सब हिसाब-किताब क' लेलक ।

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