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बुधवार, 11 अप्रैल 2012

गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक गजल

कहल जनम के संग अछि अपन दिन चारियो जौँ संग रहितौ त' बुझितौं
जनै छलौँ अहाँ नहि चलब उमर भरि बाँहि ध कनियो चलितौँ बुझितौं

जिनगी के रौद मे छौड़ि गेलौँ असगर संग मे जौ अहुँ जड़ितहु त' बुझितौं
पीलौँ त' अमृत एकहि संगे माहुरो जँ एकबेर संगे पिबितहु त' बुझितौं

देखल अहाँ चकमक इजोरिया रैन करिया जौँ अहूँ कटितहु त' बुझितौं
सूतल फुल सजाओल सेज कहियो कांटक पथ पर चलितहु त' बुझितौं

भटकैत छी अहाँ लेल सगरो वेकल कतौ जौँ भेटियौ अहाँ जेतौँ त' बुझितौं
गरजैत छि नित बनि घटा करिया बरखा बुनी बनि बरसितौ त बुझितौं

हँसलौँ संगे खिलखिला दुहु आँखि नोरहु जँ संगहि बहबितहु त' बुझितौं
प्रेमक मोल अहाँ बुझलहु नहि कहियो "रूबी" के बात जँ मानितौँ त' बुझितौं

(वर्ण २९)

रूबी झा

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