की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। संपर्क करी मो०/ वाट्सएप न० +91 92124 61006

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक गजल , हुनक अनुरोध पर--

अनेरो बैसि बीताओल सगर रैन भोर धरि
काजर हमर बहि गेल नोर बनि ठोर धरि

मजरल महुआ आम गोटाएल यौ प्रियतम
तितिर पपिहरा नाचि-नाचि थाकल मोर धरि

बीतल मधुमास गेना गुलाब सेहो मौलाएब
आएल एहेन खरमास सुखा गेल नोर धरि

कखनो त बुझु आँहा हमर अंतर तिमिर कें
हमर काया जरै अछि क्रोधे सोर साँ पोर धरि

अभिलाषा मोन केर ज्यो अखनो अहाँ पुरायब
आबी जाउ गाम कहत "रूबी"ओर साँ छोर धरि
(वर्ण-१८ )
(रुबी झा )

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें