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मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक गजल , हुनक अनुरोध पर--

अनेरो बैसि बीताओल सगर रैन भोर धरि
काजर हमर बहि गेल नोर बनि ठोर धरि

मजरल महुआ आम गोटाएल यौ प्रियतम
तितिर पपिहरा नाचि-नाचि थाकल मोर धरि

बीतल मधुमास गेना गुलाब सेहो मौलाएब
आएल एहेन खरमास सुखा गेल नोर धरि

कखनो त बुझु आँहा हमर अंतर तिमिर कें
हमर काया जरै अछि क्रोधे सोर साँ पोर धरि

अभिलाषा मोन केर ज्यो अखनो अहाँ पुरायब
आबी जाउ गाम कहत "रूबी"ओर साँ छोर धरि
(वर्ण-१८ )
(रुबी झा )

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