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गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

गजल

‎आब आगिक पता पुछतै पानि ऐठाँ ,
नै जड़त यौ कतौ घर लिअ जानि ऐठाँ ,
कखन धरि लोक जड़तै चुप जानवर बनि ,
तोड़बै जउर से लेतै ठानि ऐठाँ ,
छै दहेजो त' महगाई कम कहाँ छै ,
ओझरी सोझरेतै लिअ मानि ऐठाँ ,
बदलतै समय सगरो नवका जमाना ,
नै जँ बदलत त' ओ मरतै कानि ऐठाँ ,
जे जनम देलकै हुनका बिसरलै सब ,
माँथ पर जनक के रखतै फानि ऐठाँ ,
भाइ मे उठम-बजड़ा नै आब हेतै ,
आइ त' स्वर्ग के देबै आनि ऐठाँ ,
आगि पर पानि नेहक हँसि ढ़ारि दिअ ने ,
"अमित" सब के मिला सुख लिअ सानि ऐठाँ . . . । ।
फाइलातुन-मफाईलुन-फाइलातुन
2122-1222-2122
बहर-असम
अमित मिश्र

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