की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। संपर्क करी मो०/ वाट्सएप न० +91 92124 61006

रविवार, 15 अप्रैल 2012

गजल

प्रस्तुत अछि रूबी झाजिक एकटा गजल ---

ओ नहि भेलाह कहियो जौँ हमर त' की भेल
होयत आब हुनके बिन गुजर त' की भेल

जेठक दिवस काटल भदबरियाक रैन
आइ बितइत नहि अछि पहर त' की भेल

बिलक्षण आर मधुर बजैत छलथि बोल
एकबेर बाजि देलथि जौ जहर त' की भेल

प्रेम मे मीरा सनक भऽ गेल छी बताहि हम
हुनका यदि परबाह नै तकर त' की भेल

युग-युग सँ गाबै छी गीत हुनक पथपर
नै एलाह एकोबेर एहि डगर त' की भेल

हुनक आश मे अछि फाटल साड़ी आ चुनरी
जोगिनिये कहैत अछि जौ नगर त' की भेल

हुनके आश तकैत पिबि गेलौ बिषक प्याला
बदनाम भेलहुँ जौ जग सगर त' की भेल

वर्ण>>१७
रुबी झा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें