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सोमवार, 9 अप्रैल 2012

गजल

प्रस्तुत अच्छी रूबी झाजिक गजल, हुनक अनुरोध पर --

सिहकल जखन पुरबा बसात अहाँ अयलहु किये नहि
मोन उपवन गमकल सूवास अहाँ अयलहु किये नहि

चिहुकि उठि जगलहु आध-पहर राति सपन हेरायल
आँखि खुजितहि टुटिगेल भरोस अहाँ अयलहु किये नहि

चेतना हमर प्रियतम फेर किएक देलहु अहाँ बौराय
बेकल उताहुल भेलहु हताश अहाँ अयलहु किये नहि

नम्र-निवेदन हम करइत छी अहाँ सँ प्रियतम हमर
गेलहु कतय नुकाय जगा आस अहाँ अयलहु किये नहि

भेल आतुर मोन रूबी केर निरखि-निरखि सुरत अहाँके
फागुन-चैत बित गेल मधुमास अहाँ अयलहु किये नहि

रुबी झा

1 टिप्पणी:

  1. नीक भावक प्रस्तुति - संगहि एक निवेदन - प्रस्तुत रचना केँ "गज़लनुमा गीत" तऽ कहल जाऽ सकैत अछि परन्तु हमरा बुझने "गज़ल" कहब किंचित ठीक नहि हेतेय। आशा अछि जे अपने अन्यथा नहि लेब।
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
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