प्रस्तुत अच्छी रूबी झाजिक गजल, हुनक अनुरोध पर --
सिहकल जखन पुरबा बसात अहाँ अयलहु किये नहि
मोन उपवन गमकल सूवास अहाँ अयलहु किये नहि
चिहुकि उठि जगलहु आध-पहर राति सपन हेरायल
आँखि खुजितहि टुटिगेल भरोस अहाँ अयलहु किये नहि
चेतना हमर प्रियतम फेर किएक देलहु अहाँ बौराय
बेकल उताहुल भेलहु हताश अहाँ अयलहु किये नहि
नम्र-निवेदन हम करइत छी अहाँ सँ प्रियतम हमर
गेलहु कतय नुकाय जगा आस अहाँ अयलहु किये नहि
भेल आतुर मोन रूबी केर निरखि-निरखि सुरत अहाँके
फागुन-चैत बित गेल मधुमास अहाँ अयलहु किये नहि
रुबी झा
नीक भावक प्रस्तुति - संगहि एक निवेदन - प्रस्तुत रचना केँ "गज़लनुमा गीत" तऽ कहल जाऽ सकैत अछि परन्तु हमरा बुझने "गज़ल" कहब किंचित ठीक नहि हेतेय। आशा अछि जे अपने अन्यथा नहि लेब।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
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