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मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

गजल

 प्रियवर सँ आखिक नोर नुकौलो ने भेल हमरा
किछ कहलो ने गेल किछु बतौलो ने भेल हमरा

मुखक आभा देखि ओ बुझि गेला अपने सभकिछु
गाल परहक नोर धार मेटौलो ने भेल हमरा

जाइक बेर मनमीत सँ तऽ किछु कहलो ने भेल
आँचर तर अपन मुख नुकौलो ने भेल हमरा

हुनका यदि रोकितहुँ अटकि जैतथि ओ जरूर
बताहि भेल हम छी हाथ बढौलो ने भेल हमरा

प्रेमक डोरी सँ बान्हि आँचर नुका हम रखितहुँ
जौ छाती सटा के रोकितहुँ सटौलो ने भेल हमरा.
-------------------वर्ण-१९----------------
रुबी झा

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