कलुआही,
बुध दिनक हटिया, चारुकात भीर-भार, बेपारी आ खरीदारक हल्ला-गुल्ला, कियो बेचैमे व्यस्त तँ कियो कीनैमे मस्त | दीनानाथजी अपन कनियाँ संगे हटियामे प्रबेश कएलथि |
हाटक मुँहेपर एकटा सात-आठ बर्खक बच्चिया
हाथमे धनी-पात लेने हल्ला करैत, "एक रुपैयाकेँ दू मुठ्ठी, एक रुपैयाकेँ दू मुठ्ठी"
मुदा
सभ कियोक ओकर बातकेँ अनसुना करैत हाटक भीरमे बिलीन भेल जाए |
दीनानाथजी सेहो ओकर बातकेँ सुनैत हाटक भीरमे मिल गेलाह |
दू घंटा बाद, जखन दीनानाथजी अपन खरीदारी
कएलाक बाद हाटक मुँहपर वापस एला तँ देखला, धनी-पात बाली बच्चिया पूर्ववत असगरे
हल्ला करैत | दू
मिनट मोन भए
ओहिठाम ठार भेला | हुनक कनियाँ, "चलून' धनी-पात तँ अपने बारीमे बड्ड अछि "
दीनानाथजी,
"कनी रुकू |
" कहैत आगू
धनी-पात बाली बच्चियासँ,
"कोना दै छिही
बुच्ची"
बुच्ची,
" बाबू एक रुपैयाकेँ दू मुठ्ठी, मुदा एखन तक किच्छो नै बिकेल, अहाँ एक रुपैयाकेँ तीन मुठ्ठी लए लिअ | "
दीनानाथजी,
"सभटा कतेक छौ |"
बुच्ची
गनैत, "एक,दू,- - सात, आठ - - - बारह,तेरह - - - उनैस, बीस, बीस मुठ्ठी बाबूजी |"
दीनानाथजी,
"सभटा दय दे |"
कनियाँ,
"हे-हे की करब ?"
दीनानाथजी कनियाँकेँ इशारासँ चुप करैत, अपन कुर्ताक जेबीसँ एकटा दस रुपैयाक नोट निकालि कए
बुच्चीकेँ देला बाद धनी-पात लैत, ओहिठामसँ बिदा भए गेला |
घर अबैत, दलानपर बान्हल जोड़ भरि बरद, हुनक आहटेसँ अपन-अपन कान उठा कए मानु सलामी देबअ लागल |
ओहो आगू आबि कs सिनेहसँ दुनूकेँ माथ होँसथति, अपन झोरीसँ धनी-पात निकालि नाइदमे दए
देलखिन्ह | ई देखि कनियाँ, "ई की कएलहुँ दस रुपैयाक धनी-पात बरदकेँ दए देलियै, एतेककेँ घास लेतहुँ तँ बरद भरि दिन खैतए | "
दीनानाथजी,
"कोनो बात नहि दस
रुपैया तँ सभकेँ देखाइ छैक मुदा ओइ धनी-पात बाली बच्चियाकेँ मुँहपर जे
असंतोस,निरासा आ दुखक भाव रहैक ओ केकरो नै
देखाइ | आ
देखलीयै बिकेला बादक खुशी, ओहि
खुशीक मोल कतौ दस रुपैयासँ बेसी हेतैक |"
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जगदानन्द
झा 'मनु'
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