कलुआही
जयनगर राजमार्ग, बरखाक समय, पिचक काते-कात खधिया सभमे पानि भड़ल
| दीनानाथजी आ हुनक जिगरी दोस्त
रामखेलाबनजी, दुनू
गोटा अपन-अपन साईकिलपर उज्जर चमचमाईत धोती-कूर्ता पहिर,
पान खाइत, मौसमकेँ आनन्द लैत बतियाइत चलि
जाइत रहथि | कि पाछुसँ एकटा नव चमचमाईत बड्डका एसी
बुलेरो कार दीनानाथजीकेँ
उज्जर धोती-कूर्तापर थाल-पानि उड़बैत
दनदनाईत आगू निकैल गेलन्हि |
दुनू
दोस्तक साईकिल एका-एक रुकल | रामखेलाबनजी
हल्ला करैत कारबलाकेँ गरिएनाइ
शुरू केलन्हि |
दीनानाथजी,
"रहए दियौ दोस्त किएक
अपन मुँह खराप करै छी, एसी
कारमे बंद ओ कि
सुनत, भागि गेल | ओनाहो ओ आठ लाखक कारपर चलैत अछि,
हम आठ सएकेँ साईकिलपर छी तँ पानि- थालक छीत्ता तँ हमरे परत |"
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