की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। संपर्क करी मो०/ वाट्सएप न० +91 92124 61006

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

गजल

हमर जीवन भरि करेजा तुटिते रहल
सब कियो हमरा सँ आई फुटिते रहल

जेकरा हम अपन तन मन सब सोपलौं
मोन कें ओ हमर सदिखन लुटिते रहल

हमर भागक कनिक लिखलाहा देखियौ
किछ जए लिखलौं छने में मिटिते रहल

पीठ पाँछा आब रेतै गरदैन अछि
प्रेम एक दोसर सँ सबतरि छुटिते रहल

आब बैसल मनु झमारल हारल कनै
जोडलौं कतबो मुदा मन तुटिते रहल

(बहरे जदीद -2122-2122-2212)
जगदानन्द झा 'मनु'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें