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सोमवार, 9 अप्रैल 2012

गजल


मन होइए हम मरि जाइ
बस पाञ्च काठी परि जाइ

छै झूठ में सदिखन रमल
दुनिआ तs ओ सब गडि जाइ

नै घुस बिना जतए काज
ओ सगर सासन जरि जाइ

एको सडल पोखरि में जँ
सब माछ ओकर सडि जाइ

कुल जाहि में एको भक्त
ओ सगर कुल मनु तरि जाइ

(बहरे-मुन्सरक, SSIS+SSSI)
***जगदानन्द झा 'मनु'

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