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शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

गजल

नहि हम कागजक आखर जनि पएलहुँ
नहि हम  अहाँक करेज में सनि  पएलहुँ

आब केँ पतियाएत हमर मोन कें   कनिको
अहाँ  तs नहि केखनो हमरा  जनि पएलहुँ

बिन पानिक गति जेना माछक होएत छैक
ओहे गति हमर, हम नहि कनि पएलहुँ

अपन देश छोडि कs परदेश जा बसलहुँ
सुन्नर  यादि छोडि नहि किछु अनि पएलहुँ

बर्खो-बर्ख हम रहलहुँ दूर परदेश में
एकरा त ' 'मनु'  अपन  नहि मनि पएलहुँ

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१७)
जगदानन्द झा 'मनु'  : गजल संख्या-३६ 

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