बहुत हर्खक गप्प जे मैथिलपुत्र मासिक पुरस्कार योजनाक, दोसर मासक (सितम्बर, २०१२) चयन भए गेल अछि | गुंजन श्रीजीकेँ हुनक कविता "भगवान आहाँ हमर प्रणकेँ लाज राखि लेब"केँ लेल चयन कएल गेलैन्हि । हुनका बधाइ।
भगवान आहाँ हमर प्रणकेँ लाज राखि लेब
किछु दिन भेल,
दिल्लीसँ पटना लौटैत रही,
मोनहीं मोन एकटा बात सोचैत रही,
ताबेत एकता अर्धनग्न बच्चा सोझामे आयल,
आ कोरामे अपनोसँ छोटके लेने,
चट्ट द’ सोझामे औंघरायल,
हम सोचिते रही जे आब की करी ,
बच्चा बाजल,-
सैहेब अहाँ की सोचि रहल छी ?
हम त’ आब अपनों सोचनाय छोड़ि देने छी ,
जौ मोन हुए त दान करू,
हमरा हालैतीपर सोच क’ नै हमर अपमान करू,
बात सुनि ओकर,
अपन जेबीमे हाथ देलहुं,
आ ओकर तरहत्थीपर किछु पाइ गाइन देलहुं,
डेरा पहूँची क’ सोचलहूँ की हम ई नीक केलहुं,
या एकटा निरीह नेन्नाकेँ भिखमंगीकेँ रास्ता पर आगू बढ़ा देलहुं,
प्रण केलहूँ अछि जे आब ककरो भीख नहि देब,
भगवान आहाँ हमर प्रणकेँ लाज राखि लेब,
जा हम त अपने भीख माँगि रहल छी भगवान सँ,
जो रे भिखमंगा,....छिह.......
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