की अहाँ बिना कोनो रूपैया-पैसा लगोने अप्पन वेपार कय लाखो रूपया महीना कमाए चाहै छी ? वेलनेस इंडस्ट्रीज़मे। संपूर्ण भारत व नेपालमे पूर्ण सहयोग। sadhnajnjha@gmail.com पर e-mail करी Or call to Manish Karn Mo. 91 95600 73336

शनिवार, 20 अक्टूबर 2012

गजल

माए ओढ़ना ओढ़ा दे हम सूतय छी
आब हमरा छोडि़ दे हम सूतय छी

सभ दिन मन पड़ैति अछि ई बात
थाकल राति जखन हम सूतय छी

दिन त डयूटी में बीति जायत अछि
बितेति नै अछि राति हम सूतय छी

सूतय त छी  नींद कहाँ होयति अछि
कखन होयत प्रात हम सूतय छी

कहलहुँ जे एखन जुनि तंग करु
भोर मे आयब याद हम सूतय छी

रातिमें भरि राति सपना में छलीह
तैं नहिं जागब आब हम सूतय छी 

-------- वर्ण14 --------
सरल वार्णिक बहर
आशिक ’राज’

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें