केदार प्रसाद गामक एकटा कुशल कुम्हार । माटिक बासन जेना
घैल,
ढाकन, मटकुरी बना अपन जीवन यापन
करै छलाह । माटिक बासन बनेनाइ मात्र हुनक आजीवकाक साधन नहि भs
कs हुनका लेल एकटा
सुन्नर कारीगरी छल । अपन काज करैकाल ओ ऐना तनमय भs
जाइ छलाह जेना एकटा भक्त अपन अराध्य देवताक ध्यानमे अपन
तन-मनक सुधि बिसैर जाइत छैक । ओ अपन स्वं साधनासँ धिरे-धिरे छठि मैयाक
सुन्नर व आकर्षित हाथी सेहो बनबए लगला । हुनकर बनाएल माटिक बासन आ छठिक
हाथीक बड्ड प्रशंसा होइत छल ।
धिरे-धिरे गामक परिवेश बदलए लागल । माटिक बासनक जगह स्टील आ आन-आन धातु
लेबए लागल । केदार प्रसादजीक आमदनी कम होबए लगलन्हि मुदा ओ अपन काजक प्रति
निष्ठा
आ समर्पणकेँ दुवारे कुम्हारक काज नहि छोरि पएला ।
हुनक सुन्नर सुशिल बेटा बिभू नेन्नेसँ अपन पुस्तैनी काजमे माँजल । ई कहैमे
कोनो संकोच नहि जे ओ अपन बाबूओ सँ बीसे । केदार प्रसादजी एहि गपकेँ नीकसँ
बुझैत
अपन होनहार पुतकेँ गुणसँ मोने-मोन खुस छलाह आ चिंतीत सेहो । चिंतीत एहि
दुवारे की कुम्हारक काजक कि बर्तमान छैक आ कि भबिष्य हेतै से हुनका बुझल
मुदा बिभूक हस्तकौशल देखि ओकरा एहि काजसँ बाहर केनाइ उचित नहि बुझलाह ।
बिभू सेहो इस्कूल पढ़ाइक संगे-संग अपन बाबूक सभटा गुणकेँ
अंगीकार
केने गेल ।
अपन
बाबूक
छठिक हाथीसँ आगू बढ़ि ओ मूर्तिकलामे अपन हस्तकौशलक उपयोग करै लागल । ओकर
बनाएल मूर्तिक चर्चा गाम
भरिमे
होबए लगलै । जतए ओकर बाबूक बनाएल छठिक हाथीकेँ एगारह टाका भेटन्हि ओतए ओकर
बनाएल छोट-छोट कनियाँ- पुतड़ा सभकेँ सय-सबासय टाका भेटअ लगलै । बिभू अपन
बाबूक देख-रेखमे मूर्तिकलामे दिनो- दिन आगू बढ़ए लागल । आब ओकर बनाएल माए
सरोस्वती,
कृष्णास्टमी, विश्वकर्मा पूजाक
मूर्तिक माँग चारूकातक बीस गाम तक होबए लगलै मुदा बिभूक बाबू तैयो ओकर
बनाएल मूर्तिमे कोनो ने कोनो दोख निकालि आ ओकरा अओर बेसी नीक मूर्ति बनाबैक
प्रेरणा देथिन । बिभू सेहो हुनक गपकेँ मन्त्र मानि आगू आरो नीक मूर्ति
बनाबएमे लागि जे ।
बिभू दसम वर्गकेँ बाद इस्कूली पढ़ाइ छोड़ि पूर्णतः मूर्तिकलामे अपनाकेँ
समर्पित कए लेलक । अठारहम बरखक पूर्ण बुझनूक भs
गेल आब ओकरा नीक बेजएकेँ ज्ञान भs
गेलै । ओकर मूर्तिक प्रशंषा आब गाम नहि, जिला नहि
राज स्तरपर होबै लगलै । आब तँ
ओकर बनाएल एक-एकटा मूर्तिकेँ दू-दू तिन-तिन हजार टाका भेटए लगलै । मुदा ओकर
बाबू एखनो ओकर मूर्तिमे कोनो ने कोनो दोख निकाइल ओकरा आर सुन्नर मूर्ति
बनाबैक निर्देश देथिन । पहिले बिभू हुनक गपकेँ मन्त्र मानि कमी दूर करैक
चेष्टामे लागि
जाइ
छल मुदा आब हुनक गपसँ ओकर मोन कतौ-ने कतौ आहत होइत छलै । मुदा बिरोध करैक
सहाश नहि तेँ मोनकेँ मारि हुनक बताएल निर्देशमे लागि जाइ छल
।
जेना-तेना काज आगू बढ़ैत रहल आ ओकर बनाएल गेल मूर्तिक चर्चा आब राजक सीमासँ
निकैल बाहर दस्तक देबए लगलै । राजसरकारकेँ गृहमंत्रालयसँ बिभूकेँ पत्र एलै
जाहिमे ओकर बनाएल गेल मुर्तिकेँ अखिल भारतीय मूर्ति प्रदर्शनीमे राखक
व्यवस्था कएल गेल रहैक । सभटा खर्चा राजसरकारक आ विजेताकेँ देशक
सर्वश्रेष्ट मूर्तिकारक सम्मानकेँ संगे-संग एक लाख टाकाक नगद इनाम सेहो ।
ई पत्र पाबि बिभूकेँ बड्ड प्रसंता भेलै । सभसँ पहिले
दौरल-दौरल अपन बाबूकेँ एहि गपक सुचना देलक । केदार प्रसादजी सेहो बड्ड
प्रसन्य भेलाह हुनकर जीवन भरिकेँ मेहनत रंग लाइब रहल छल । बिभू राति-राति
भरि जागि-जागि कए अपन मार्गदर्शक गुरु बाबू संगे लागि गेल ।
एकसँ एक नीक-नीक मूर्ति बनेलक मुदा केदार प्रसादजी सभ मूर्तिमे कोनो ने
कोनो कमी निकाइले देथिन । केदार प्रसादजीक बताएल कमीकेँ दूर करैकेँ बदला
बिभूक मोनमे आब नकारात्मक प्रवृति घर करए लगले । हुनक बताएल कमीपर आब ओ
सबाल-जबाब करए लागल । काइल्ह प्रतियोगता लेल मूर्ति भेजैक अंतिम दिन आ आइ
बिभू अपन बनाएल मूर्ति सभमे सँ एकटा सभसँ नीक मूर्तिकेँ अंतिम रूप देबएमे
लागि गेल । केदार प्रसादजी बारीकीसँ ओहि मूर्तिकेँ निरीक्षण करैत,
बिभूक दिमागमे हलचल चलि रहल छल - "हाँ
आब तँ ई कोनो ने कोनो गल्ती बतेबे करता ।"
ततबामे केदार प्रसादजी अपन चुप्पीकेँ तोरैत बजलाह -"सुन्नर
! आइ तक बनाएल गेल मूर्ति सभमे सर्बश्रेस्थ ।" कनीक
काल चुप रहला बाद फेर -" मुदा
।"
मुदा की आब
तँ
बिभूक
मोन बिफैर गेलै -
"अबस्य कोनो ने कोनो कमी गनेता ।"
केदार प्रसादजी अपन गपकेँ आगू बढ़ाबैत -"
ई जँ एना रहितेए तँ आरो
बेसी नीक,
आ ई रंग जँ फलाँ फलाँ रहथि तँ जबरदस्त
होइते ।"
नैन्हेटासँ जिनक गपकेँ मन्त्र मानि पूरा करैमे जि-जानसँ लागि जाइ छल आइ
हुनक गपकेँ नहि पचा पएलक । बिफैर कए बाजि उठल -"रहै
दियौ ! अहाँकेँ तँ
एनाहिते दोख निकालए अबैए,
अपन बनेएल ढाकन बसनी तँ
कियो एको टाकामे नहि किनैए आ हम केतबो नीक मूर्ति बना लि कोनो ने कोनो दोख
अबश्य निकाइल देब ।"
बिभूक गप सूनिते मातर केदार प्रसादजीक शांत मुद्रा भंग भए सोचनीए भs
गेलनि । एकटा नमहर साँस लैत बिभूक पीठ ठोकैत बजलाह -"बस
बेटा बस ! जहिया व्यक्तिकेँ अपन पूर्णताकेँ आभाष भs
जाइ छैक ओकर बाद ओकर जीवनक विकास ओतहिए रुकि जाइ छैक । पूर्णताकेँ आभास
दिमागक आगू बढ़ैक चेतनामे लकबा लगादै छैक ।"
किछु छन चुप्प,दुनू
गोटे शांत । बिभूक आँखिसँ नोर टघरैत जे आइ ई की कए लेलहुँ,
ओकरा अपन गल्तीक ज्ञान भs गेलै ।
केदार प्रसादजी आगू - "हमर सपना छल जे हमर बेटा
राजक आ देशक नहि वरण दुनियाँक सर्वश्रेष्ट मूर्तिकार बनत.....मुदा
नहि । कोनो गप नहि हमराकेँ जनै छल
? कियो नहि । हमर बेटाकेँ पूरा राज जनैत अछि एकटा नीक
मूर्तिकारकेँ रूपमे । हमरा लेल बड्ड पैघ गप अछि । मुदा हमर सपना ------- आब
नहि पूरा होएत । ई कहि ओ ओहि कक्षसँ बाहर भs गेला ।
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