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सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

गजल

हँसि हँसि के मारि गेल त हम कि करी
जीबते कियो जारि गेल त हम की करी

बहकि त गेल छलहुँ हुनका देखि के
खसति ओ सम्हारि गेल त हम की करी

मोन हमर भीजल पुआर जकाँ छल
मुदा आगि पजारि गेल त हम की करी

रुप हुनक आँखिक सोझा रहति अछि
हुनका नै बिसारि भेल त हम की करी

देखते देखेत ओ दीवाना बना देलक
मन मोहिनी नारि भेल त हम की करी

सिनेहक बात सुनाबय के मोन छल
पहिले तकरारि भेल त हम की करी

आब सभ गरिया के चलि जायत अछि
भाइये सॅ अराडि़ भेल त हम की करी


-------- वर्ण15 --------

आशिक ’राज’

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