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सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

गजल


कहलियनि अपन दिल दिय कहलथि आई नै देब
हमर दिल क किछु दिय कहलथि एको पाई नै देब

अहाँ क नहिं अछि पसिन त  हमर दिल वापिस करु
ओ मुँह बना हँसेति कहलथि अँगुठा देखाई नै देब

पूछलियनि दिल ल के दिल नंिह दी कतुका इंसाफ छी
हमर मर्जी हम किछु करी कहथि छिरियाई नै देब

हमरा तामस उठल कहलियनि जाउ एहिठाम सॅ
आई क बाद कखनहँु अपन सूरत देखाई नै देब

कानेति शगि गेलीह तेखने आईधरि नै देखलियनि
एतबी कहलीह दर्द दएलौ एकर दवाई नै देब 

एतबी इच्छा बस एक बेरि कतौ ओ श्ेंटि श् जईतथि 
अपन सपथ खा क कहेति छी हुनका जाई नहिं देब

अहाँ सभ मीत थिकहँु हमर तखन एगो बात कहू
अंतिम समय क हमर अतिंम इच्छा पुराई नै देब

प्राण अटकल अछि हमर बस हुनका देखय लेल
कलजोडि़ कहि रहल आशिक की हुनका बजाई नै देब

सरल वार्णिक बहर
वर्ण - 21

आशिक ’राज’

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