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मंगलवार, 16 अक्टूबर 2012

लोक करे लूटमार जेंका (हास्य कविता)


लोभी बैसल अछि लोभ मे जोंक जेंका
ओक्कर चालि चलब झपटमार जेंका
सरकारी खरांत लेल बेहाल भेल
लोक करे लूटमार जेंका.

लोभी लोकक भीड़ मे केकरा समझाएब
"
कारीगर" बैसल अछि चुपचाप बौक जेंका
बेईमान लोक नहि ईमानदारी सीखत?
लोक करे लूटमार जेंका.

डेग-डेग पर भ्रष्टाचारी भेटत 
ओ जाल बिछौने  बैसल अछि
चालि चलब प्रोपर्टी दलाल जेंका
लोक करे लूटमार जेंका.

सरकारी व्यबस्थाक हाल बेहाल
भ्रष्टाचारक बढ़ी गेल अछि मकड़जाल
एही ओझरी मे ओझराएल कतेक लोक
मुदा नेता नाचै अपने ताल.

जनताक नाम पर फुसियाहिंक जनसेवा
नेतागिरी के धंधा चमकि गेल
सभ खाए रहल सरकारी मेवा
जहिना बाढ़ी मे अपटल माछ कतेक रेवा.

बेमतलब के करै विदेश यात्रा
विकसित योजनाक नाम पर
बेहिंसाब खर्च करै जेना
सरकारी धन छैक ओक्कर बपौती जेंका.

बाढ़ी-सुखार सँ लोक तबाह भेल
मुदा कोनो स्थाई समाधान नहि कराउत
हवाई सर्वेक्षण मे नेता जी
फुसियांहिक बिधि टा पुराउत.

राहत आ बचाव के नाम पर
रहत पैकेजक बंदरबांट भ रहल
उज्जर कुरतावला सभ सँ आगू
ओक्कर चालि चलब झपटमार जेंका.

http://kishankarigar.blogspot.com 

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