मैथिली साहित्य आ भाषा लेल समर्पित Maithiliputra- Dedicated to Maithili Literature and Language
सोमवार, 31 दिसंबर 2012
MAITHILI SEED STORIES- मैथिली विहनि कथा संग्रह
शनिवार, 29 दिसंबर 2012
गजल
गजल
बिना दागक हमर छल ई चान सन मुँह
कुकर्मी नोचि लेलक मिल राण सन मुँह
कि सपना देखलौँ आ लुटि गेल जिनगी
घटल एहन बनल देखूँ आन सन मुँह
रमल रहियै अपन धुनमेँ आ कि एलै
चिबा गेलै हमर सुन्नर पान सन मुँह
बनल नै स्त्री समाजक उपभोग चलते
किए तैयो मनुख नोचै चान सन मुँह
हमर सभ लूटि गेलै ईज्जत व चामोँ
कि करबै जी कऽ लेने छुछुआन सन मुँह
बहरे-करीब मने
"मफाईलुन - मफाईलुन-फाइलातुन"
मात्रा क्रम-1222 - 1222 - 2122
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
प्रेम नै भाइ ई जहर छै
पोखिरसँ उठल बुझु लहर छै
प्रेम मेँ जान जाएत चलि
तड़पि के मरब ई जहर छै
नै परु प्रेमके जाल मेँ
एखनो एकरे पहर छै
नै करु प्रेमके ई नशा
ई तँ मिसरी धुलल जहर छै
ई मुकुन्दोँ फसिकँ ऐहिमेँ
कहलक प्रेम नै जहर छै
*बहरे- मुतदारिक ।
फाइलुन मने दीर्ध-ह्रस्व-दी र्ध चारि बेर ।
© बाल मुकुन्द पाठक ।।
हजल
देखियौ देखियौ जुग केहन भऽ गेलै कक्का यौ
टोपी चश्मा पहिर कऽ चलै छै छौड़ा उचक्का यौ
छमकि कऽ चलैए संगे नटुआ सन केश छै
जीँस टीशर्ट पहिर कऽ अंग्रेज भेल पक्का यौ
चौक पर घूमैत छै बोतल चढ़ा कऽ भोरेसँ
सिगरेटक दिन भरि ई उड़ाबै छोहक्का यौ
अपनाकेँ बड़का ई बुझैत अछि हीरो छौड़ा
मुहँ नै लगाबूँ एकरासँ अछि ई लड़क्का यौ
स्त्री जकाँ श्रृंगार करै छै लगाबैये ठोररंगा
भोरेसँ कटाके दाढ़ी मोछ लागे जेना छक्का यौ
छौड़ी पाछाँ पागल भेल छै काज धाज छोड़िकेँ
हुलिया एकर देखि कऽ मुकुन्द हक्काबक्का यौ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण17
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
हमरासँ जौँ दूर जाएब अहाँ
रहि रहि इयादि आएब अहाँ
सिनेह लेल अहीँके बेकल छी
छोड़ि कऽ हमरा कि पाएब अहाँ
खोजि खोजि के तँ पागल बनलौँ
बताउ कि कतऽ भेँटाएब अहाँ
किएक लेल एहन प्रेम केलौँ
जौँ ई बुझलौँ नै निभाएब अहाँ
बदलि गेलियै अहाँ कोना कऽ यै
हमरासँ नै बिसराएब अहाँ
हमरा छोड़ि गेलौँ मुकुन्द संग
आब कतेक के फसाँएब अहाँ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण12
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
सुनु अहाँ कियै हमरा सँ दूर गेलौँ यै
अहीँक चलतै हम तँ नाको कटेलौँ यै
रुप अहाँक देखिकऽ हम तँ मुग्ध भेलौँ
ओहि परसँ कियै ई कनखी चलेलौँ यै
मगन छलौँ अहाँ मेँ काज धाज छोड़िकऽ
प्रेम मेँ तँ हे प्रेयसी जग बिसरेलौँ यै
पढ़बाक उमरि छल छलौँ इक्कीस के
काँलेज के छोड़िकऽ अहाँमेँ ओझरेलौँ यै
मुकुन्द अछि प्रेमी अहाँकँ सभ जानैये
जानसँ बेसी चाहे जे तकरा गंवेलौँ यै
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 15
©बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
आइ हमर मोन बड्ड खनहन अछि
ककरोसँ हमरा तँ नै अनबन अछि
तरुआ तरकारी आ पापड बनि गेल
देखूँ चूल्हा पर भातो ले अदहन अछि
आसिन एलै बजरखसुआँ गर्मी गेलै
ठंढा ठंढा पुरबा बहै सनसन अछि
फेर दुर्गा मेला हेतै नाच आ लीला हेतै
देखूँ खुदरा पैसा बाजै झनझन अछि
घर परिवार मे तिहार के दिन एलै
अंगना मे चलैत नेना ढ़नमन अछि
कनिये दिनके तँ छै ई पावैनक मजा
कातिकक बाद तँ ऊहे अगहन अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 15
€€बाल मुकुंद पाठक
गजल
गजल
अहाँ बैसला पर कि पाएब एतौ
रहब काजके
बिन कि खाएब एतौ
कतोऽ दुख कतोऽ सुख लिखल अछि तँ सबटा
कियै
हाथ कर्मसँ हटाएब एतौ
हयौ दोष आ गुणतँ हाएत सभँमेँ
बिना गलत
हम नै पराएब एतौ
अहाँ बिसरि अप्पन पुरनका बबंडर
चलूँ नव
विचारसँ नहाएब एतौ
कहल केकरो मानबै बात नै जौँ
तँ भूखल अहाँ
मरि कनाएब एतौ
बहरे-मुतकारिब ।फऊलुन(मने122)चारि बेर।
~ ~ ~ ~
~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।
कियै हाथ कर्मसँ हटाएब एतौ
हयौ दोष आ गुणतँ हाएत सभँमेँ
बिना गलत हम नै पराएब एतौ
अहाँ बिसरि अप्पन पुरनका बबंडर
चलूँ नव विचारसँ नहाएब एतौ
कहल केकरो मानबै बात नै जौँ
तँ भूखल अहाँ मरि कनाएब एतौ
बहरे-मुतकारिब ।फऊलुन(मने122)चारि बेर।
~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
अहाँ हमरा बिसरि रहलौँ
वियोगे हम तँ
मरि रहलौँ
घुसिकँ कोनाकँ देहेमेँ
अहाँ हमरा पसरि
रहलौँ
बिसरऽ ई लाख चाही हम
बनिकऽ लस्सा लसरि रहलौँ
कियै केलौँ अहाँ ऐना
करेजसँ नै ससरि रहलौँ
छुटल घर आ अहूँ
छुटलौँ
दुखेँ हम आब मरि रहलौँ
बहरे -हजज ।
'मफाईलुन'
(मने 1222) दू बेर ।
~ ~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।
अहाँ हमरा पसरि रहलौँ
बिसरऽ ई लाख चाही हम
बनिकऽ लस्सा लसरि रहलौँ
कियै केलौँ अहाँ ऐना
करेजसँ नै ससरि रहलौँ
छुटल घर आ अहूँ छुटलौँ
दुखेँ हम आब मरि रहलौँ
बहरे -हजज ।
'मफाईलुन' (मने 1222) दू बेर ।
~ ~ ~ ~ ~ बाल मुकुन्द पाठक ।।
बाल गजल
मेला चलब हमहुँ कक्का यौ
पहिरब आइ सूट पक्का यौ
खेबै जिलेबी आ झूलब झूला
संगे संग किनब फटक्का यौ
बैट किनब क्रिकेट खेलै ले
आबि कऽ खूब मारब छक्का यौ
साझेसँ अखारामे कुश्ती हेतै
पहलवानोँ तँ छै लडक्का यौ
अन्तिम बेर छी एतौ हम तँ
जाएब बाबू लऽग फरक्का यौ
कोरा मे कने लिअ ने हमरा
ई भीड़ मेँ मारि देत धक्का यौ
चलू ने जल्दी किनै ले जिलेबी
नै तँ उड़ि जाएत छोहक्का यौ
बाबूओसँ बेसी अहीँ मानै छी
छी बड्ड नीक हमर कक्का यौ
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 11
~ ~बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
गजल
आँखिसँ खसैत नोर रुकत की नै
नोरक सरस
आबो सुखत की नै
सुखिकऽ ठोर आब गेल अछि फाटि
फाटल ठोर
फेरोसँ जुटत की नै
बेकल जिनगी भरि गेल दर्दसँ
करेजक बेकलता
मेटत की नै
आँखिक पलक फूलि गेल कानि कऽ
बंद भेल आँखि फेरो
खुजत की नै
जीबाक चाह तँ हटि गेल मोनसँ
मरलोऽ पर दुख ई छुटत
की नै
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
...............बाल मुकुंद
पाठक ।।
फाटल ठोर फेरोसँ जुटत की नै
बेकल जिनगी भरि गेल दर्दसँ
करेजक बेकलता मेटत की नै
आँखिक पलक फूलि गेल कानि कऽ
बंद भेल आँखि फेरो खुजत की नै
जीबाक चाह तँ हटि गेल मोनसँ
मरलोऽ पर दुख ई छुटत की नै
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
...............बाल मुकुंद पाठक ।।
बाल गजल
बाल गजल
हाएत दिवाली जड़तै दीप
आँगने
आँगन बड़तै दीप
घर दुआरि आँगन सँभमेँ
डेगे डेऽग पर जड़तै
दीप
अन्हार रातिमेँ इजोत दैले
मोमबत्ती संगे लड़तै दीप
हम सब खेलब हुक्का पाती
लेसै लेल काज पड़तै दीप
चुक्का
डिबिया सबसँ मिलके
गाम प्रकाशसँ भरतै दीप
करै लेल घरकँ
द्वारपाली
अन्हार रातिसँ लड़तै दीप
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 11.
.................................................
डेगे डेऽग पर जड़तै दीप
अन्हार रातिमेँ इजोत दैले
मोमबत्ती संगे लड़तै दीप
हम सब खेलब हुक्का पाती
लेसै लेल काज पड़तै दीप
चुक्का डिबिया सबसँ मिलके
गाम प्रकाशसँ भरतै दीप
करै लेल घरकँ द्वारपाली
अन्हार रातिसँ लड़तै दीप
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 11.
..............बाल मुकुंद पाठक ।।
गजल
आस टूटल भाग भूटल
आँखि इनहोरे सँ शीतल
घुरिकँ आबूँ ई जिनगी मेँ
यै छी अहाँ कियैक रुसल
सिनेह केलौँ तेँऽ दुख पेलौँ
कानियोँ के नै चैन भेटल
लहर उठल करेजासँ
लागै कि जेना साँस छूटल
कि करबै जीके ई जिनगी
अहाँक जौँ ना संग भेटल
आस टूटल भाग भूटल
आँखि इनहोरे सँ शीतल
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 10
- - - - - - - बालमुकुंद पाठक ।।
गजल
कि लिखूँ हम गजल उमर नादान अछि
हुनकर दीवाना ई दुनिया जहान अछि
रुपकँ जलवा देखूँ लागै छथि चान सन
गोल गोल गोर गाल पूर्णिमा समान अछि
केश अहाँक रेशम सन आँखि मृग जेना
धायल भेलौँ देखिकँ होश नै ठेकान अछि
...
गुलाबी गाल पर नीक लागै ठोरक लाली
अहीँमे अटिकगेल छौड़ासभँकँ जान अछि
कमर जे लचकैये देखि मोन बहकैये
'मुकुन्द' के लागे जेना हुस्नके दोकान अछि
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 16
. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .
. . . . . . . . .बाल मुकुन्द पाठक ।।
गजल
फेर आइ आँखिसँ नोर बहाबै छी
रहि रहि अहीकँ बात घुराबै छी
कतै छै सिनेह ई कोना हम कहूँ
चलि आउ एखनो कियै सताबै छी ।
...
साँझेसँ अँहीँ लेल नोर खसाबै छी ।
देखूँ कानि कानि साँझसँ भोर भेलै
भोरे भोर हम मदिरा चढाबै छी ।
मदिरोसँ बढिकँ अँहीँ मे नशा ये
ओहि नशा लेल फेरसँ बजाबै छी ।
नीन्नोँ नै आबै जौँ सपनो मेँ देखतौँ
सुतबा ले कतै मोनकेँ मनाबै छी ।
हाथ जोडिकँ ई कहौँ हे भगवान
कियै नै अहाँ मुकुन्दसँ मिलाबै छी ।।
सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
€€ "बाल मुकुन्द पाठक"
गजल
गजल
आइ हम बड़ उदास छी ,कोना कहौँ ककरासँ
ओहि दिनसँ कानैत छी यौ,अहाँ गेलौँ जहियासँ
हे यौ हमर प्रीतम ,अहाँ एखनो तऽ घर आबूँ
दिन राति हम एतबे , प्रार्थना करै छी दैबासँ
चारिये दिन तँ बुझियौ ,चारि साल सन बीतल
अहाँसँ बतियाइ लेल फोनो माँगलौँ अनकासँ
पछबा के बहलासँ ,बात एगो इयाद आएल
चलि गेलौँ नैहर हम तँ ,रुसल छलौँ अहाँसँ
चाही नै कपडा लत्ता ,और चाही नै धन दौलत
एतबे कहौँ मुकुन्द चलि आबु,जल्दी पटनासँ
सरल वार्णिक बहर
वर्ण-18
गजल
हे भगवान अपन ताकत देखा दिअ
हुनका क्षण मे हमरा लग बजा दिअ
बहुत दिनसँ तरसैत छी प्रेम लेल
सोलहो श्रृंगार मे एहि ठाम पठा दिअ
दिन- राति आँखि सँ कोसी गंडक बहबौँ
बान्ह टूटल ई गामक गाम बहा दिअ
कानैत कानैत हमरा अहाँ हँसा दिअ
हुनको हमरे सन हालत बना दिअ
असगर बैसल छी नै नीन्न नै चैन आबै
मुकुन्द हमरासँ तँ गले लगबा दिअ
दिन- राति आँखि सँ कोसी गंडक बहबौँ
बान्ह टूटल ई गामक गाम बहा दिअ
कानैत कानैत हमरा अहाँ हँसा दिअ
हुनको हमरे सन हालत बना दिअ
असगर बैसल छी नै नीन्न नै चैन आबै
मुकुन्द हमरासँ तँ गले लगबा दिअ
गजल
अहाँक बिना कोना कऽ रहबै हम
चाँन जकाँ मुँह नै बिसरबै हम
बड़ दिनसँ प्यासल छी मिलनक
सिन्धुक गहराई मेँ डुबबै हम
अहाँ रुप केर भरल खजाना छी
तँए रुपक दीवाना बनबै हम
अछि मोरनी सन के चालि अहाँ के
अहाँक संगे नाँचि के देखबै हम
ई मोन कहै छै एक ना एक दिन
अहाँ सँ कतौ नै कतौ भेटबै हम
'मुकुन्द' पुछैत अछि हे मृगनैनी
कहि दिअ कनियाँ बनबै हम ।।
बाल मुकुन्द पाठक ।
गजल
हमरा तऽ एको दिन ,साल जकाँ भारी लागै
देह हाथ सुखल हमर ,केशोँ नै माथा मेँ
अईना मेँ देखलासँ बडका बेमारी लागै
खाई पीयै मेँ हमरा किछो ,नीको नै लागैये
भात दालि कि खाईब ,निको नै सोहारी लागै
कि कहब हम बाबूकेँ ,केना देखेबै मुँह
पटना मेँ पढ़ल अनेरे मोन भारी लागै
देखै छी फोटो जौँऽ , उ और याद आबैत छथि
मुकुन्द के अहाँ बिना रहल लचारी लागै ।।
गजल
कियो बात मानै नै छी छै की खराबी शराब पीबै छी
हम तँ दिन राइत घुरिआइ छी मोन पाड़ि रहि रहि
हुनकर याद आएल बात घुराबी शराब पीबै छी
एक दिन उ हमरा नजरमे बसेला प्यार जगेला
हम दिलकेँ हुनक प्यारमे दौड़ाबी शराब पीबै छी
कहियो गाछीमे बैस नयन मिलेला मोबाइलसँ बतियेला
उ अपन दुनिया बसेलाऽ हमरा पागल बनेला
हुनकर चक्करमे मुकुन्द भेलै शराबी शराब पीबै छी
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012
लाशसँ भरल ट्रेन
अपन लक्ष्यक पाँछा करैत ट्रेन बिहारक सीमामे प्रवेश कएलक । ट्रेन बक्सर स्टेशनपर रुकल । तीनटा, 24-25 सँ 30 बर्खक बिचक बलिस्ट युवक एके संगे भीड़केँ चिड़ैत जबड़दस्ती डिब्बामे प्रवेश कएलक । ओ तीनू सभकेँ ठेलैत धकलैत आगू बढ़ि ओतए जा कए ठार भेल जतए दिल्लीसँ चढ़ल परिवार बैसल छल । ओ तीनू अपनामे हा-हा-ही-ही ठठ्ठा करैत ओतेकदूरक वातावरणकेँ अभद्र बना देलक । ओतबोपर नहि माइन तीनूकेँ तीनू सिगरेट निकाइल कए ओकर नम्हर - नम्हर कश मारै लागल । तीनूक विषाक्त गप्पेकेँ पचेनाइ मुश्किल भए रहल छल ओहिपर आब सिगरेटक लछेएदार धुवाँक जहर, असहनीय होएत । दिल्लीसँ आबिरहल परिवारक पुरुष विनम्रसँ बजलनि - "भाइ साहब ! सिगरेट बंद करू, एहिठाम स्त्री धिया-पुता सभ छैक एकर धुवाँ सहनाइ असहनीय भs रहल छैक ।"
तीनू उदण्डमे सँ एकटा - "अरे वाह ! सिगरेट हमर, पाइ हमर, मुँह हमर तेँ हम सभ किएक नहि पीबू ?"
दिल्लीसँ आबिरहल परिवारक पुरुष - "मुदा हमरा सभकेँ असुबिधा भs रहल अछि ।"
"असुबिधा ! अरे वाह, बेसी असुबिधा अछि तँ अहीँ सभ दोसर डिब्बामे चलि जाउ ।"
"हम सभ दोसर डिब्बामे किएक चलि जाउ, हमरा सभ लग रिजर्वेशन अछि, बिना रिजर्वेशनक तँ अहाँ सभ छी ओहूपर अनैतिक काज कए रहल छी । ट्रेनमे बीड़ी सिगरेट पीनाइ अपराध छैक ।"
"अरे वाह ! अपने तँ उकील साब छी (दुनू हाथ जोरैत ) धन्य छी उकीलसाब, अपराध ! हा हा हा .... अपराध ई कोन अपराध भेलैह, अपराध होएत जखन अहाँक सुन्नर कनियाँकेँ लs कए भागि जाइ ।"
एतबा कहैत तीनूकेँ तीनू भीतर आगू बढ़क प्रयास कएलक आ एहि प्रयासमे किछु धक्का- मुक्की सेहो भेलै । तीनू आगू बढ़ि मर्यादाक सीमासँ बाहर बढ़ैए बला छल की रेलवे पुलिसक दूटा जवान कन्हापर बन्दूक रखने गस्त लगबैत ओहि डिब्बामे आएल । ओकरा देखते मातर तीनू ओहिठामसँ लंकलागि कए भागि गेल । मुदा ओहि डिब्बाक ठसाठस भरल भीड़मे सँ केकरो सहास नहि भेलै जे मात्र तीन गोट कपाटक मनुखसँ बाजि लड़ि कए एकटा नीक परिवार, जेकरा संगे की करीब 17-18 घंटा पाछूसँ यात्रा कए रहल छल रक्षा करी । आ ओ सहास हेतैक कोना । कियो जीबित होए तहन ने । सभ के सभ लाश अछि । एहन लाश जे अखबार पढ़ैत अछि, समाचार सुनैत अछि, यात्रा करैत अछि मुदा कोनो अनैतिक बातक पाँछा आबाज नै उठाबैत अछि ।
*****
जगदानन्द झा 'मनु'
गजल
भूतलेलौं किए एना मन लगा लिअ
आउ चलि संगमे हमरो अप्पना लिअ
नै बचन देब हम नै किछु मोल एकर
संग हमरा लऽ मोनक संसय हटा लिअ
जुनि बुझू आन जगमे सपनोसँ कखनो
बुझि कऽ अप्पन कनी छू ठोरसँ सटा लिअ
जीवनक काँट एते कोना बिछब ई
छोड़ि सगरो जमानाकेँ वर बना लिअ
रूप सुन्नर अहाँकेँ ई ओहिपर बदरा
जीब कोना करेजामे 'मनु' बसा लिअ
(बहरे - असम, मात्राक्रम : 2122-1222-2122)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
बुधवार, 26 दिसंबर 2012
मंगलवार, 25 दिसंबर 2012
गजल
नीक नीक लोकक ई केहन काज अछि
बेटा बेचैत नै कनिको किए लाज अछि
मायाक महिमा सगरो पसरल अछि
जतए देखू आब रुपैयाक राज अछि
धर्म निकलैत अछि पाखण्डमे बोड़ि क'
नवका आइ केहन एकर शाज अछि
बैमानी शैतानी बिच्चेठाम पोसाइ छैक
शुद्धाक जीवनमे तँ खसल गाज अछि
अप्पन बड़ाइमे 'मनु' बुड़ाइ करै छी
माथक बनल ई कएहन ताज अछि
(सरल वार्णिक वर्ण, वर्ण - 15)
रविवार, 23 दिसंबर 2012
मैथिलीक समानान्तर साहित्य आ संस्कृति: एकटा उदार आन्दोलनी स्वरूप
शनिवार, 22 दिसंबर 2012
सभसँ प्रिय बस्तु
रुबाइ
साँवरिया पिया अहाँ ई की कएलहुँ
साउन चढ़ल छोड़ि चलि कोना गएलहुँ
शीतल हवा बहल सिहरैए हमर तन
कोना रहब बिनु अहाँ बुझि नै पएलहुँ
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
रुबाइ
नाथक पजारल नेह धधैक रहल अछि
असगर करेजा हमर तड़ैप रहल अछि
लगने कोन अहाँसँ हम नेह लगेलौं
प्रेमक गरमीसँ देह बरैक रहल अछि
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
रुबाइ
अभिमन्यु जकाँ चक्रव्यूहमे फसलौं
सिख हम बचब नहि अर्जुन बनि पेएलौं
जीवन केर एहि महाभारतमे ‘मनु’
चहुदिस ठाढ़ भेल कौरवकेँ देखलौं
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012
FARMHOUSE CHICKEN EFFECT-ALL WHITE, BRAHMIN AND IMPOTENT -SAHITYA AKADEMI ANNOUNCES YUVA AWARD IN MAITHILI (REPORT GAJENDRA THAKUR)
मंगलवार, 18 दिसंबर 2012
ज्योतिरीश्वर पूर्व गएर ब्राह्मण-परम्पराक महाकवि विद्यापति (चित्र पनकलाल मंडल) -पनक लाल मण्डलकेँ विदेह सम्मान -चित्रकला लेल -भेटल छन्हि।
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ज्योतिरीश्वर पूर्व गएर ब्राह्मण-परम्पराक महाकवि विद्यापति (चित्र पनकलाल मंडल) -पनक लाल मण्डलकेँ विदेह सम्मान -चित्रकला लेल -भेटल छन्हि। |
ज्योतिरीश्वर पूर्व गएर ब्राह्मण-परम्पराक महाकवि विद्यापति (चित्र पनकलाल मंडल) -पनक लाल मण्डलकेँ विदेह सम्मान -चित्रकला लेल -भेटल छन्हि। |
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ज्योतिरीश्वर पूर्व गएर ब्राह्मण-परम्पराक महाकवि विद्यापति (चित्र पनकलाल मंडल) -पनक लाल मण्डलकेँ विदेह सम्मान -चित्रकला लेल -भेटल छन्हि। |
मैथिलीक आदिकवि विद्यापति
कवीश्वर ज्योतिरीश्वर(लगभग १२७५-१३५०)सँ पूर्व (कारण ज्योतिरीश्वरक ग्रन्थमे हिनक चर्च अछि), मैथिलीक आदि कवि। संस्कृत आ अवहट्ठक विद्यापति ठक्कुरःसँ भिन्न। सम्भवतः बिस्फी गामक बार्बर कास्टक श्री महेश ठाकुरक पुत्र। समानान्तर परम्पराक बिदापत नाचमे विद्यापति पदावलीक (ज्योतिरीश्वरसँ पूर्वसँ) नृत्य-अभिनय होइत अछि।
बोधि कायस्थ
विद्यापति ठक्कुरःक पुरुष परीक्षामे हिनक गंगालाभक कथा वर्णित अछि। महाकवि विद्यापति (ज्योतिरीश्वर पूर्व मैथिली पदावली सभक लेखक) क विषयमे सेहो गंगालाभक ई कथा प्रचलित आ बादमे विद्यापति ठक्कुरक (संस्कृत आ अवहट्ठक लेखक) विषयमे सेहो गंगालाभक ई कथा प्रचलित भेल।
महाराज शिव सिंह
मिथिला नरेश विद्यापति ठक्कुरः (संस्कृत आ अवहट्ठक लेखक)क आश्रयदाता ओइनवार वंशक महाराज शिव सिंह।
उगना महादेव
महादेव (उगनारूपी) विद्यापतिक अहिठाम गीत सुनबा लेल उगना नोकर बनि रहैत छलाह। मैथिलीक आदिकवि विद्यापति (ज्योतिरीश्वर पूर्व) आ विद्यापति ठक्कुरः (संस्कृत आ अवहट्ठक लेखक आ राजा शिवसिंहक दरबारी) दुनूसँ सम्बद्ध कऽ उगनाक ई कथा प्रसिद्ध भेल।
महाकवि विद्यापति ठाकुर 1350-1435
विद्यापति ठक्कुरः 1350-1435 विषएवार बिस्फी-काश्यप (राजा शिवसिंहक दरबारी) आ संस्कृत आ अवहट्ठ लेखक। कीर्तिलता, कीर्तिपताका, पुरुष परीक्षा, गोरक्षविजय, लिखनावली आदि ग्रंथ समेत विपुल संख्यामे कालजयी रचना। ई मैथिलीक आदिकवि विद्यापति (ज्योतिरीश्वर पूर्व)सँ भिन्न छथि।
सोमवार, 17 दिसंबर 2012
की मैथिली मात्र मैथिल ब्राह्मणक भाषा छी? -(रिपोर्ट गजेन्द्र ठाकुर)
की मैथिली मात्र मैथिल ब्राह्मणक भाषा अछि?