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शनिवार, 29 दिसंबर 2012

गजल

गजल

अहाँक बिना कोना कऽ रहबै हम
चाँन जकाँ मुँह नै बिसरबै हम

बड़ दिनसँ प्यासल छी मिलनक
सिन्धुक गहराई मेँ डुबबै हम

अहाँ रुप केर भरल खजाना छी
तँए रुपक दीवाना बनबै हम


अछि मोरनी सन के चालि अहाँ के
अहाँक संगे नाँचि के देखबै हम

ई मोन कहै छै एक ना एक दिन
अहाँ सँ कतौ नै कतौ भेटबै हम

'मुकुन्द' पुछैत अछि हे मृगनैनी
कहि दिअ कनियाँ बनबै हम ।।

बाल मुकुन्द पाठक ।

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