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शनिवार, 29 दिसंबर 2012

गजल

गजल

फेर आइ आँखिसँ नोर बहाबै छी

रहि रहि अहीकँ बात घुराबै छी

कतै छै सिनेह ई कोना हम कहूँ

चलि आउ एखनो कियै सताबै छी ।

...

गेलौँ चलि कतौ हमरा बिसरिकँ

साँझेसँ अँहीँ लेल नोर खसाबै छी ।

देखूँ कानि कानि साँझसँ भोर भेलै

भोरे भोर हम मदिरा चढाबै छी ।

मदिरोसँ बढिकँ अँहीँ मे नशा ये

ओहि नशा लेल फेरसँ बजाबै छी ।

नीन्नोँ नै आबै जौँ सपनो मेँ देखतौँ

सुतबा ले कतै मोनकेँ मनाबै छी ।

हाथ जोडिकँ ई कहौँ हे भगवान

कियै नै अहाँ मुकुन्दसँ मिलाबै छी ।।

सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 13
€€ "बाल मुकुन्द पाठक"

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