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शुक्रवार, 31 मई 2013

बुढ़ारीक डर




नेना, “माए बाबीकेँ हमरा सभसंगे भोजन किएक नहि दै छियनि ?”
माए, “बौआ बड्ड बुढ़ भेलाक कारणे हुनका अपन कोठलीसँ निकलैमे दिक्कत होइत छनि तैँ दुवारे हुनकर भोजन हुनके कोठरीमे पठा दै छियनि |”
नेना, “मुदा बाबी तँ दिन कए बारीयोसँ घुमि कऽ आबि जाइ छथि तखन भोजनक समय एतेक किएक नहि चलल हेतैन |”
माए, “एहि गप्प सभपर धियान नहि दियौ, एखन ई सभ अहाँ नहि बुझबै | बुढ़ सभकेँ एनाहिते है छैक |”
नेना, “अच्छा तँ अहुँक बुढ़ भेलापर अहाँक भोजन एनाहिते एसगर अहाँक कोठरीमे पठाएल जाएत |”
अबोध नेनक गप्पक उत्तर तँ माए नहि दए सकलखिन मुदा अगिला दिनसँ बाबीक भोजन सभक संगे होबए लगलन्हि |

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जगदानन्द झा 'मनु'

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